ओउम् की सार्थकता को व्यक्त करने से पहले इसके अर्थ का बोध होना अति आवश्यक है। ओउम् की ध्वनि संपूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त है जो जीवन की शक्ति है। जिसके होने से शब्द को शक्ति प्राप्त होती है, यही ओउम् का रूप है। ओउम् को सबसे पहले उपनिषद में वर्णित किया गया था। उपनिषदों में ओउम् का अलग-अलग तरह से वर्णन किया गया है। जैसे कि ब्रह्माण्डीय ध्वनि, रहस्यमय शब्द या दैवीय चीजों का प्रतिज्ञान। इस नाम में हिन्दू, मुस्लिम, सिख या इसाई जैसी कोई बात नहीं है, बल्कि ओउम् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का मुख्य भाग है। यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति तथा आदर का प्रतीक है। उदाहरण के लिये यदि हिन्दू अपने मंत्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द ‘‘आमेन” का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिये करते हैं। हमारे मुस्लिम भाई इसको ‘‘आमीन” कह कर याद करते हैं और बौद्ध इसे ‘‘ओं मणिपद्मे हूँ” कह कर प्रयोग करते हैं। सिख मत भी ‘‘इक ओंकार” अर्थात् ‘‘एक ओउम् ” के गुण गाता है। इन सभी मंत्र या श्लोक में क्या समानता है ?
समानता है ॐ यानि ओउम् जिसे ‘‘ओंकार या प्रणव” भी कहा जाता है। देखें तो सिर्फ ढाई अक्षर, समझे तो संपूर्ण ब्रह्माण्ड का सार है। ओउम् धार्मिक नहीं है, परन्तु यह हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म तथा सिख धर्म जैसे कुछ धर्मों में एक पारंपरिक प्रतीक और पवित्र ध्वनि के रूप में प्रकट होता है। ओउम् किसी एक की सम्पत्ति नहीं है ओउम् सबका है, यह सार्वभौमिक है व इसमें पूरा ब्रह्मांड है। ओउम् को प्रथम ध्वनि माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांण्ड में भौतिक निर्माण के अस्तित्व में आने से पहले जो प्राकृतिक ध्वनि थी, वह ओउम् की ही गूंज थी। इसलिये ओउम् को ब्रह्माण्ड की आवाज कहा जाता है। ओम का जाप हमें पूरे ब्रह्माण्ड की इस चाल से जोड़ता है और उसका हिस्सा बनाता है चाहे वह अस्त होता सूर्य हो या चढ़ता हुआ चन्द्रमा। ज्वार का प्रवाह हो या हमारे दिल की धड़कन या फिर हमारे शरीर के भीतर हर परमाणु की आवाजें। जब हम ओउम् का जाप करते हैं तो हमें हमारे सांस, हमारी जागरूकता और हमारी शारीरिक ऊर्जा के माध्यम से इस सार्वभौमिक चाल की सवारी पर ले जाता है और हम एक गहरा सम्बन्ध समझना शुरू करते हैं जो मन और आत्मा को शांति प्रदान करता है।