योग का आठवां अंग मेडिटेशन अति महत्वपूर्ण है। एकमात्र मेडिटेशन ही ऐसा तत्व है कि उसे साधने से सभी स्वतः ही सधने लगते हैं। किंतु योग के अन्य अंगों पर यह नियम लागू नहीं होता। मेडिटेशन दो दुनिया के बीच खड़े होने की स्थिति है। हमारे मन में एक साथ कई कल्पनायें और विचार चलते रहते हैं। इससे मन-मस्तिष्क में कोलाहल सा बना रहता है। हम नहीं चाहते, लेकिन फिर भी यह चलता रहता है। आप लगातार सोच-सोचकर स्वयं को कमजोर करते जा रहे हैं। मेडिटेशन अनावश्यक कल्पना व विचारों को मन से हटाकर शुद्ध और निर्मल मौन में चले जाना है। ध्यान जैसे-जैसे गहराता है मनुष्य साक्षी भाव में स्थित होने लगता है। उस पर किसी भी भाव, कल्पना तथा विचारों का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता। मन और मस्तिष्क का मौन हो जाना ही मेडिटेशन का प्राथमिक स्वरूप है।