ओउम् एक सिर्फ शब्द ही नहीं बल्कि इस एक शब्द में सृष्टि के रचयिता का समावेश है। ढाई अक्षर का शब्द पूरे ब्रह्माण्ड का सार है। ऐसा माना जाता है कि संसार के अस्तित्व में आने से पहले जिस प्राकृतिक ध्वनि की गूंज थी वह ओउम् की है। प्राचीन योगियों के अनुसार ब्रह्माण्ड में कुछ भी हमेशा के लिये स्थाई या स्थिर नहीं है। जब संसार का अस्तित्व भी नहीं होगा तब भी इस ध्वनि की गूंज ब्रह्माण्ड में मौजूद रहेगी, क्योंकि इस मंत्र का आरंभ तो है परन्तु अंत नहीं। इसलिये ओउम् को ब्रह्माण्ड की आवाज कहा गया है। यह सार्वभौमिक है क्योंकि इसमें पूरे ब्रह्माण्ड का निवास है।
प्रातःकाल पवित्र होकर इस मंत्र का जाप कभी भी किसी भी वक्त और किसी भी स्थिति में कर सकते है यदि आप कुश के आसन पर बैठकर और पूर्व की तरफ मुंह करके जाप करते हैं तो यह सबसे बढ़िया माना जाता है। इस मंत्र का अभ्यास सुखासन, पह्मासन, अर्धपह्मासन व वज्रासन आदि में बैठकर भी कर सकते हैं। इस मंत्र का जाप 5, 7, 11 या फिर 21 बार इसका उच्चारण अपनी सुविधा अनुसार कर सकते हैं।
1. ओउम् का जाप करने के लिये शांत स्थान होना चाहिये।
2. ओउम् का जाप करने के लिये आपको अपनी सुविधा अनुसार आरामदायक स्थिति में बैठना चाहिये।
3. आंखे बन्द करके शरीर और नसों को ढीला छोड़िऐ तथा कुछ लम्बी सांसे लीजिये।
4. ओउम् मंत्र का जाप करें और इसके कंपन महसूस कीजिये।
5. ओउम् मंत्र का जाप करते रहिये जब तक आपको आराम महसूस न हो।
शास्त्रों के अनुसार ओउम् शब्द का नियमित जाप करने से व्यक्ति ब्रह्माण्ड की शक्तियों को प्राप्त करता है। इतना ही नहीं, उसके जीवन के सभी दुःख, रोग समाप्त हो जाते हैं। ओउम् केवल एक शब्द ना होकर एक ध्वनि का काम करता है। इस शब्द का जाप करते समय जिस ध्वनि का उद्धव होता है उसी के कारण हमें कई लाभ प्राप्त होते हैं। इसलिये जब भी ओउम् का जाप करें तो एक शांत स्थान का चयन करें। कोई ऐसी जगह जहां दूर तक कोई ना हो, खुली हवा आये, शांत वातावरण हो और आप प्रकृति को करीब से महसूस कर सकें। जैसे कोई बगीचा, मैदान या खुली छत जैसा स्थान आपको ठीक लगे।