यदि ओउम् एक दिव्य ध्वनि है तो इसकी उत्पत्ति कहां से हुई ? यदि ब्रह्माण्ड में ध्वनि तरंगे व्याप्त हैं तो इनका कारक क्या है ? क्योंकि यह तो विज्ञान का सामान्य नियम है कि कोई भी ध्वनि अपने-आप उत्पन्न नहीं हो सकती, जहां कुछ हरकत होगी वहीं ध्वनि उत्पन्न होगी चाहे वह इन स्थूल कानों में सुनाई दे या नहीं। यदि आप ध्वनि की प्रृकति पर ध्यान दें, तो आपको पता चलेगा कि यह तभी उत्पन्न होती है जब कोई दो वस्तुयें आपस में टकराती हैं। उदाहरण के लिये तट से समुद्र की लहरें, ढोलक से हाथ, पत्तियों से हवा इत्यादि। संक्षिप्त में कहा जाये तो हमारे आस-पास की सभी ध्वनियाँ दृश्य और अदृश्य वस्तुओं द्वारा उत्पन्न की जाती है, उनके आपस में टकराने से या एक साथ कंपन करने से, वायु के कणों की तरंगें उत्पन्न होती हैं, जिनसे ध्वनि का जन्म होता है।
लेकिन ओउम् मंत्र की ध्वनि इससे भिन्न है, यह ध्वनि स्वयं उत्पन्न होती है। ओउम् मंत्र की ध्वनि ही पहली ध्वनि है और इसी में सभी ध्वनियाँ समाहित हैं। ओउम् मंत्र के उच्चारण से चिकित्सीय, मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक लाभ होते हैं। भले ही आप ओउम् मंत्र का अर्थ नही जानते या आपकी शब्द आस्था नहीं है लेकिन तब भी आप इसके लाभ प्राप्त कर सकते हैं। विज्ञान ने भी ओउम् के उच्चारण और उसके लाभ को प्रमाणित किया है। यह धीमी, सामान्य और पूरी सांस छोड़ने में सहायता करती है। यह हमारे श्वसन तंत्र को विश्राम देता है और नियंत्रित करता है। साथ ही यह हमारे मन-मस्तिष्क को शांत करने में भी लाभप्रद है।